दक्षिण भारत में एक छोटा सा राज्य था। उसका नाम बल्लारी था। एक बार छत्रपती शिवाजी महाराजजी की सेना ने उसपर आक्रमण किया। बल्लारी राज्य के सैनिक जी-जान से लड़े, पर कम संख्या में होने के कारण उनकी पराजय हुई। शेष सैनिक बन्दी कर लिये गये और उन्हीं में वहां की शासक रानी मलबाई थी।
वीरता का आदर करनेवाले छत्रपती शिवाजी महाराजजीने उसको सम्मान पूर्वक लाने की आज्ञा दी। पर मलबाई को बन्दिनी दशा में यह सम्मान बुरा लगा और उसने शिवाजी से कहा कि, मैं तो इस सम्मान के व्यवहार को अपमान की तरह समझती हूँ। आप मुझे एक हारे हुए शत्रु के नाते मृत्युदण्ड दें।”
इस कथन पर छत्रपती शिवाजी महाराजजी ने सिंहासन से उतर कर, स्वयं उसका अभिवादन किया और कहा, आप जैसी वीर रमणियोंका मैं अपमान नहीं कर सकता। मेरी माता जिजाबाई का हालही मे देहावसान हो गया है। मैं उन्हीं की वीर-प्रकृति का दर्शन आपसे कर रहा हूँ ओर अब से मैं सदैव आपको माता के समान ही मानूँगा।”
यह सुनकर मलबाई के नेत्र स्नेहवश भर आये। उसने कहा, “तुम वास्तव में छत्रपति हो, तुमसे अवश्य ही धर्म और देश की रक्षा होगी।”
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कहानी की सीख
आदरणीय राजा छत्रपती शिवाजी महाराजजी की इस अद्भुत कथा से, यह सीख हमें मिलती है की, चाहे कितनाभी उच्च पद आपको प्राप्त हो जाए, अपने पद का और मान्यताओंका उचित प्रयोग करना चाहिए। अहंकार को दूर रखकर विनम्रता को अपनाना चाहिए। महत्त्वपूर्ण सीख यह मिलती है की, स्त्रियोंके प्रति मनमें व आचार में सन्मान होना चाहिए। इससे हमें अपनेआप सम्मान की प्राप्ती होंगी।
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