वट सावित्री व्रत कथा | वट सावित्री व्रत पूजा विधि और अनुष्ठान 2024 | Vat Savitri Vrat Ki Katha

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वट सावित्री व्रत कथा

प्रसिद्ध तत्त्‍‌वज्ञानी अश्वपति भद्र देश के राजा थे। उनको संतान का सुख नहीं प्राप्त था। इसके लिए उन्होंने 18 वर्ष तक कठोर तपस्या की, जिसके उपरांत सावित्री देवी ने कन्या प्राप्ति का वरदान दिया। इस वजह से जन्म लेने के बाद कन्या का नाम सावित्री रखा गया।

यह कन्या बड़ी होकर बहुत ही रूपवान हुई। योग्य वर न मिलने की वजह से राजा दुखी रहते थे। राजा ने कन्या को खुद स्वयं के लिए वर खोजने के लिए भेजा। जंगल में उसकी मुलाकात सत्यवान से हुई। द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पतिरूप में स्वीकार कर लिया।

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इस घटना की जानकारी के बाद ऋषि नारद जी ने अश्वपति से सत्यवानकी अल्पआयु के बारे में बताया। यह समझते हुए माता-पिता ने बहुत समझाया, परन्तु सावित्री अपने धर्म से नहीं डिगी। जिनके जिद्द के आगे राजा को भी झुकना पड़ा।

सावित्री और सत्यवान का विवाह हो गया। सत्यवान बहुत गुणवान, धर्मात्मा और बलवान थे। वे अपने माता-पिता का पूरा ख्याल रखते थे। सावित्री राजमहल छोड़कर जंगल की कुटिया में आ गई थीं, उन्होंने अपने वस्त्राभूषणों का त्यागकर अपने अन्धे सास-ससुर की सेवा करती रहती थी।

सत्यवान् की मृत्यु का दिन निकट आ गया। नारद जी ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बता दिया था। समय नजदीक आने से सावित्री अधीर अस्वस्थ होने लगीं। उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया। तथा नारद मुनि के कहने पर पितरों का पूजन किया।

हररोज की तरह सत्यवान भोजन बनाने के लिए जंगल में लकड़ियां काटने जाने लगे, तो सावित्री उनके साथ गईं। वह सत्यवान के महाप्रयाण का दिन था। सत्यवान लकड़ी काटने पेड़ पर चढ़े, लेकिन सिर चकराने की वजह से नीचे उतर आये। सावित्री पति का सिर अपनी गोद में रखकर उन्हें सहलाने लगीं। तभी यमराज आते दिखे जो सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे। सावित्री भी यमराज के पीछे -पीछे जाने लगीं।

उन्होंने बहुत मना किया। परंतु सावित्री ने कहा, जहां मेरे पतिदेव जाते हैं, वहां मुझे जाना ही चाहिये। बार-बार मना करने के बाद भी सावित्री पीछे- पीछे चलती रहीं। सावित्री की निष्ठा और पतिपरायणता को देखकर यम ने एक-एक करके वरदान में सावित्री के अन्धे सास- ससुर को आंखें दीं, उनका खोया हुआ राज्य दिया और सावित्री को लौटने के लिए कहा। किंतु वह लौटती कैसे? सावित्री के प्राण तो यमराज लिये जा रहे थे।

यमराज ने फिर कहा कि, सत्यवान् को छोडकर चाहे जो मांगना चाहे मांग सकती हो, इस पर सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्यवती का वरदान मांगा। यम ने बिना विचारे किए, प्रसन्न होकर तथास्तु बोल दिया। वचनबद्ध यमराज आगे बढ़ने लगे। सावित्री ने कहा कि, प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है। अब? यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गईं, जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था।

सत्यवान जीवित हो गए, माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई और उनका राज्य भी वापस मिल गया। इस प्रकार सावित्री- सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे। अतः पतिव्रता सावित्री की तरह ही अपने सास-ससुर का उचित पूजन करने के साथ ही अन्य विधियों को प्रारंभ करें।

वट सावित्री व्रत करने और इस कथा को सुनने से व्रत रखने वाले के वैवाहिक जीवन के सभी संकट टल जाते हैं और वृक्षोंमें सर्वशक्तिमान वटवृक्ष की असिमीत शक्ती भी प्राप्त होती है।

वट सावित्री 2024 व्रत का महत्व

भविष्योत्तर और स्कंद पुराण सहित अन्य प्राचीन ग्रंथों में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। इस व्रत के अंतर्गत बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है, जो हिंदू त्रिमूर्ति भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान महेश्वर का प्रतिनिधित्व करता है। यह पेड़ स्वयं इन देवताओं का प्रतीक है; जड़ें ब्रह्मा का प्रतिनिधित्व करती हैं, तना विष्णु का और शिखर शिव का प्रतिनिधित्व करता है। विवाहित हिंदू महिलाएं इस पवित्र दिन पर अपने पतियों की सुरक्षा और सफलता सुनिश्चित करने के लिए उपवास करती हैं और उनकी समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं। इस व्रत से जुड़े रीति-रिवाज दृढ़ भक्ति और विवाहित जीवन के पवित्र संबंध का गहरा प्रभाव दिखाते हैं।

वट सावित्री की तारीख और समय 2024

वट सावित्री 2024: 6 जून, 2024
अमावस्या तिथि का आरंभ: 5 जून, 2024 को शाम 7:54 बजे
अमावस्या तिथि का समापन: 6 जून, 2024 को शाम 6:07 बजे

वट सावित्री पूर्णिमा: शुक्रवार, 21 जून, 2024 > यह दिन वट सावित्री व्रत का एक और महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे कुछ क्षेत्रों में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।

वट सावित्री पूजा विधि और अनुष्ठान 2024

सुबह की रस्में:

महिलाएं सूर्योदय से पहले तैयार होती हैं और तिल और आंवला (भारतीय गूसबेरी) से स्नान करती हैं। वे नए कपड़े पहनती हैं, कंगन पहनती हैं और अपने माथे पर सिंदूर लगाती हैं।

बरगद की जड़ का सेवन:

महिलाएं तीन दिन का उपवास करती हैं, जिसमें वे केवल बरगद के पेड़ की जड़ को पानी के साथ खाती हैं।

वट वृक्ष की सजावट:

पूजा के हिस्से के रूप में, फूल, चावल, पानी और लाल या पीले धागे को बरगद के पेड़ को अर्पित किया जाता है। महिलाएं पेड़ की परिक्रमा करते हुए प्रार्थना करती हैं।
यदि बरगद का पेड़ उपलब्ध नहीं है, तो चंदन या हल्दी के पेस्ट से बरगद के पेड़ की छवि बनाई जा सकती है। इसी प्रकार, पूजा की जाती है और तैयार प्रसाद प्रियजनों को दिया जाता है। घर के बुजुर्गों और विवाहित महिलाओं से आशीर्वाद लिया जाता है।

परोपकारी कार्य:

वट सावित्री व्रत का एक संतोषजनक हिस्सा जरूरतमंदों की मदद करना है। इस दिन, कई लोग गरीबों को भोजन, नकद और कपड़े देते हैं।


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