अहंकार से स्वयं को दूर रखिए | हिंदी बोधकथा | Keep Yourself Away From Egoistic Behavior

अमरीश नामक एक राजा था। उसने परमात्मा को खोजना चाहा। वह किसी आश्रम में गया। उस आश्रम के प्रधान साधु महाराज ने कहा, जो कुछ तुम्हारे पास है, उसे छोड़ दो। परमात्मा को पाना तो बहुत सरल है। अमरीश राजा ने यही किया। उस राजा ने राज्य छोड़ दिया और अपनी सारी संपत्ति गरीबों में बाँट दी। वह बिल्कुल भिखारी बन गया।

लेकिन उन साधु महाराज ने उसे देखते ही कहा, अरे, तुम तो सभी कुछ साथ ले आए हो। अमरीश राजा की समझ में कुछ भी नहीं आया, पर वह बोला नहीं। राजा ने स्वयं को ऊपर से नीचे तक देखा और सोचने लगा, पता नहीं किस चीज को साथ लाने की बात यह साधु महाराज कर रहे हैं। पर उसे परमात्मा को पाने की धुन थी सो उसने खामोश रहना ही उचित समझा।

साधु महाराज ने आश्रम के सारे कूड़े-करकट को फेंकने का काम उसे सौंपा। अमरीश राजा ने सोचा ओह साधु महाराज यह सोचता है कि, मैं आम जनों की तरह मेहनत नहीं कर सकता। वह पूरी तल्लीनता से कुडा – कचड़ा उठाने का काम करने लगा। आश्रमवासियों को यह बड़ा कठोर लगा, किंतु साधु महाराज ने कहा, सत्य को पाने के लिए अमरीश राजा अभी तैयार नहीं है और इसका तैयार होना तो बहुत ही जरूरी है।

कुछ दिन और बीते। आश्रमवासियों ने साधु महाराज से कहा कि अब वह अमरीश राजा को उस कठोर काम से छुट्टी देने के लिए उसकी परीक्षा ले लें। साधु महाराज ने बोला, ठीक है। इस बार राजा को आश्रम से बाहर निकल कर गाँव से दूर कूड़ा फेंकने का आदेश मिला। अमरीश राजा ने मन ही मन कहा, यदि मुझे परमात्मा को पाना न होता तो आज तुम्हें मैं भगवान से मिला देता। तुम्हारा भाग्य अच्छा है जो मैं पहले जैसा नहीं रहा।

अगले दिन अमरीश राजा अब कचरे की टोकरी सिर पर लेकर गाँव के बाहर फेंकने जा रहा था, तो एक आदमी रास्ते में उससे टकरा गया। राजा बोला, आज से पंद्रह दिन पहले तुम इतने अंधे नहीं थे। साधु महाराज को जब इसका पता चला तो उसने कहा, मैंने कहा था न कि, ‘अभी समय नहीं आया है। वह अभी वही है।’

कुछ दिन बाद फिर अमरीश राजा से कोई राहगीर टकरा गया। इस बार राजा ने आँखें उठाकर उसे सिर्फ देखा, पर कहा कुछ भी नहीं। थोड़ी देर आँखें तरेरते हुए, दांत भींचकर उसे देखता रहा। साधु महाराज को जब इसकी जानकारी मिली, तो उसने कहा, संपत्ति को छोड़ना कितना आसान है, पर अपने को छोड़ना कितना कठिन है। तीसरी बार फिर यही घटना हुई। इस बार अमरीश राजा ने रास्ते में बिखरे कूड़े को बटोरा और आगे बढ़ गया, जैसे कुछ हुआ ही न हो।

उस दिन साधु महाराज ने कहा, अब यह तैयार है। जो खुदी को छोड़ देता है, वही प्रभु को पाने का अधिकारी होता है। सत्य को पाना है तो स्वयं को छोड़ दो। ‘मैं’ से बड़ा और कोई असत्य नहीं है।

कहानी की सीख :

अगर जीवन में परम आनंद व परम ईश्वर चाहते हो, तो “मै” मतलब अहंकार को त्याग देना जरुरी है। संयम और सातत्य से तथा विनम्र भावसे कार्य को करते रहना चाहिए। समर्पण बहुत जरुरी है।

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