प्रह्लाद ऋषि कश्यप और दिति के पुत्र हरिण्यकश्यप का पुत्र था। प्रह्लाद की माता कयाधु थी जो कि विष्णु भक्त थी और भक्त प्रह्लाद इनसे ही प्रभावित थे।
यह हरिण्यकश्यप, भगवान विष्णु का कट्टर विरोधी था। कारण था कि विष्णु जी ने वराह रूप धारण कर इसके छोटे भाई हरिण्याक्ष का वध कर दिया था, जो कि देव व मानव जीवन के लिए धरा पर खतरा बन गया था।
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हरिण्यकश्यप और हरिण्यक्ष दैत्य थे और देत्यों में प्रतिस्पर्धा या ईर्ष्या थी। दोनों स्वयं को दूसरे से श्रेष्ठ और उत्तम समझते थे।
हरिण्यकश्यप वध हेतु विष्णु को नरसिंहवतर लेना पड़ा और अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की तथा सनातन परंपरा की बनाए रखा। हरिण्यकश्यप ही दैत्यराजा था और उसने देवराज इंद्र आदि आदित्यों को हराकर स्वर्ग पूरी पर अधिकार कर देवताओं को स्वर्ग से भगा दिया था।
मुल्तान दैत्यराज हिरण्यकश्यप की राजधानी थी। दैत्य बहुत दुराचरण करते थे। हिरण्यकश्यप ने भगवान ब्रह्मा की पूजा करके बहुत से वरदान प्राप्त किये थे और वह लगभग अजेय अमर हो गया था। ब्रह्म जी ही सब संसार के जनक है।
प्रह्लादपुरी आजकल के मुल्तान को जो कि पाकिस्तान में है, को ही कहा जाता है। यही प्रह्लाद की राजधानी थी। संपूर्णतः कहानी तो आप जानते ही होंगे। प्रल्हाद विष्णु भक्त था। उसकी विष्णु भक्ती को नष्ट करनेके बहुत सारे प्रयास असुर हिरण्यकश्यप ने किए। पर सब प्रयास व्यर्थ गए। और उस दुराचारी असुर हिरण्यकश्यप का अंत हो गया। भगवान नारायण ने उसका वध कर दिया। भक्त प्रल्हाद की भगवदभक्ती अजरामर हो गयी।
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कहानी का सार:
चकमक पत्थर (Flint Stone) चाहे सौ वर्ष तक जल में पड़ा रहे, तो भी उसकी अग्नि नष्ट नहीं होती। उसे जल से निकालकर, लोहे पर मारते ही अग्नी की चिनगारी निकलने लगती है। इसी प्रकार ईश्वर पर विश्वास रखने वाले व्यक्ति चाहे हजारों अपवित्र- संसारी लोगों के बीच में पड़े रहें तो भी उनकी श्रद्धा और भक्ति बनी रहेगी।
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