2. पारिवारिक सम्बन्धों में छोटों को बड़ों के प्रति जो विश्वासयुक्त प्रेम होता है उसे भी श्रद्धा कहते हैं।
3. बच्चों का अभिभावकों के प्रति, पत्नी का पति के प्रति छात्रों का गुरुजनों के प्रति जो गहरा सद्भाव है। वह श्रद्धा कहा जाता है ।
4. आदर्शों के प्रति श्रद्धा होने का अर्थ है कि उनका परिपालन भली प्रकार हो सकेगा और निभाया जाएगा। आदशाँ की सामान्य जानकारी समझना और औचित्य मानना एक बात हुई और उनपर श्रद्धा होना दूसरी शक्तिशाली बात है।
5. अध्यात्म क्षेत्र में तो श्रद्धा ही सफलता का मूलभूत आधार है। किसी देवता या मंत्र के प्रति श्रद्धा है तो उसकी सामान्य साधना बन पड़ने पर भी उसके चमत्कारी परिणाम होते हैं।
6. इसके विपरीत श्रद्धा के अभाव में कोई उपासनात्मक कर्म-काण्ड ढेरों समय लगाकर करते रहने पर भी कहने लायक प्रतिफल नहीं होता।
7. श्रद्धा जो व्यक्तियों को परस्पर जोड़ने का सर्वोत्तम माध्यम है। मित्रों के बीच छोटे बड़े का अन्तर रहने पर भी, उनके गुणों के आधार पर गहरी श्रद्धा हो सकती है। यह सामान्य मित्रता से बहुत आगे की बात है।
8. हिप्नोटिझम या संमोहन शास्त्र की चिकित्सा का फल भी श्रद्धा के विज्ञान पर ही चलती है। संमोहन शास्त्र से शारिरीक, मानसिक, व्यक्तित्व विकास, सामाजिकता, इन सभी विषयोंकी समस्याए या त्रुटीयां मूलत: नष्ट हो जाती है।
9. मंत्र या स्तोत्र को अगर श्रद्धायुक्त चित्त के साथ किया जाए, वह उत्तम फलदायी होता है।