By Dr. Sunetra Javkar 03/11/2023
कुंडलिनी शब्द संस्कृत के 'कुंडल' शब्द से बना हुआ है, जिसका अर्थ है गोल घुमावदार। दिव्य कुंडलिनी शक्ति व्यक्ति (जीव) के मूलाधार चक्र की जगह में सर्प के समान कुंडली मारकर सोयी रहती है। सुप्त रहती है। यह बहुत ही दिव्य महाशक्ती होती है, जिस की महत् प्रयास से जागृती हो सकती है।
स्वयंभू शिवलिंग में तीन लपेटे लगाकर सुप्त सर्पिणी की तरह पड़े होने की उपमा में यह संकेत है कि उसमें वे सभी क्षमताएं विद्यमान है, जो मानव अस्तित्व को विकसित करने के लिए मूलभूत कारण समझी जाती है।
तेजस्वरूप कुण्डलिनी जागृत होने पर इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति को प्रखर बनाती है सम्पूर्ण शरीर पर उसका प्रभाव दिखने लगता है।
व्यक्तिगत जीवन में मनुष्य शरीर में परा प्रकृति के चेतन प्रवाह का केन्द्र स्थान मस्तिष्क के मध्य अवस्थित ब्रह्मरंध्र- सहस्रार कमल हैं।